Sunday, March 4, 2012

महाराज सिवराज चढत तुरंग पर

महाराज सिवराज चढत तुरंग पर

महाराज सिवराज चढत तुरंग पर ग्रीवा जाति नैकरी गनीम अतिबल की भूषन चलत सरजा की सैन भूमिपर छाति दरकती खरी अखिल खलनकी कियो दौरि घाव उमरावन अमीरनपै गई कटिनाक सिगरेई दिली दलकी सूरत जराई कियो दाहु पातसाहुउर स्याही जाए सब पातसाही मुख झलकी
-कविराज भूषण
अर्थ :
आधी चढे भोसला मर्द जो, तो अरीची लवे मान भीतीमुळे
त्वेषे निघाली यदा दौड तेव्हा किती कापली शत्रु वक्षस्थळें
केला अहा ! घाव दिल्ली दलाची जाणो नाकची कापली संगरी
जाळून तो सुरतेला शहाच्या उरी दाहालावी प्रभेला हरी

No comments:

Post a Comment

Website Security Test